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Friday, February 20, 2015

भारतीय फिल्मों में सुधार की गुंजाईश - मोहित शर्मा (ज़हन)

भारतीय (खासकर बॉलीवुड़) और विदेशी फिल्मो की तुलना में अक्सर कई प्रशंषको की शिकायत होती है कि बिना सन्दर्भ, बजट को समझे बॉलीवुड की निंदा करना या उसे हॉलीवुड सरीखें  उद्योगों से गुणवत्ता में कमतर बताना गलत है। तो पहले तो बता दूँ कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से हर वर्ष कुछ बेहतरीन फिल्में निकलती है, जो दुनिया भर में सराही जाती है और विश्व की हर कसौटी पर खरी बैठती है, पर यह संख्या कुल निर्मित फिल्मो का बहुत छोटा हिस्सा है। बाकी मुख्यधारा या उन से इतर आयीं फिल्मो का स्तर साधारण / बेकार रह जाता है, खासकर कहानी-पटकथा के मामले में। बहाना यह मिलता है कि जनता का यही टेस्ट है, पर टेस्ट तो धीरे-धीरे बेहतर किया जा सकता है जिसकी कोई कोशिश नहीं की जाती। ऊपर से त्योहारो-छुट्टियों के समय अगर 1 बड़ी फिल्म दादागिरी से देश की 90-95 % सिनेमा स्क्रीन्स घेर लेगी तो दर्शकों के पास विकल्प ही कहाँ होगा कुछ और देखने का? इस से टेस्ट कैसे मापा जाये?

जैसे कथानक पर एक उदाहरण देता हूँ कहानी और दृश्यों पर। "चक दे इंडिया" (2007) में हर विपक्षी टीम की सिर्फ एक स्ट्रेटेजी थी। कोई एग्रेसिव खेल दिखाती टीम थी जो प्लेयर्स को चोट पहुँचा रही थी - टेकल कर रही थी, कोई टीम मैन टू मैन (प्लेयर टू प्लेयर) मार्किंग कर रही थी, इत्यादि। यह कोई हॉकी टूर्नामेंट ना होकर वीडियो गेम जैसी बात हो गयी, जिसमे हर स्टेज में कुछ फिक्स्ड बातें होती है। असल में एक स्ट्रेटेजी ना चले तो टीम्स के पास अनगिनत फोर्मेशंस और स्ट्रॅटजीज़ होती है जो वो तुरंत बदल भी सकती है। यह अंतर होता है मुख्यधारा बॉलीवुड और बाहर की फिल्मो में।

[बिंदिया नायक टू गुंजन - "फॉरवर्ड कन्याकुमारी, कन्याकुमारी....
"ऑपोसिशन प्लेयर - "थेम्स रिवर टू बरन्हेरी पैलेस... थेम्स रिवर टू बरन्हेरी पैलेस !!
"बिंदिया नायक - आंय ?????!!!!???] :p

इसके अलावा मुश्किल में एक मुस्लमान का अपमान करने वाला पूरा ज़माना बन गया, एक बड़ा तबका जो हमदर्दी और सहारा देता है उसको नहीं दिखाया गया। फिर कोच के प्लेयर्स के अगेंस्ट होने पर सब प्लेयर्स का साथ आ जाना, जब दुनिया इतनी ढीट है की कोच चाहे कैसा भी हो कई लोग चिपके रहेंगे उस से। ऐसे ही फिल्म में कई बातों को one dimensional दिखाया गया, मैं यह नहीं कह रहा की हर चीज़ टटोलो पर बाकी संभावनाओ की एक झलक तो दिखा दो। अंत में यह बताता चलूँ की मैं इस फिल्म को बेकार नहीं कह रहा, मैं कह रहा हूँ की और बेहतर हो सकती है ऐसी अच्छी फिल्मो में छोटी बातों का ध्यान रखा जाए अगर तो। :)
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